गुरुवार, 21 जनवरी 2010

एक आग का दरिया है…अरविन्द कुमार सेनाकतावारिया
सराय की गली का एक कमरा। कमरे को देखकर ऐसा लगता है कि बनने केबाद से आज तक ताजी हवा और सूरज की किरणें नही पहुंची है। इसी कमरे में मैमिलने पहुंचा गोरखपुर के सदानन्द गुप्ता से जो पिछले नौ साल सेआईएएस कीतैयारी कर रहें है। जब मै पहुंचा तो दिन के लगभग दो बजे थे और सदानन्दअपनी पढाई में मशगूल थे। कमरे व्यवस्थित था जिसमें एक कोने में कुछकिताबें रखी थी वहीं दूसरे कोने में एक कैनवास और कुछ रंग रखे हुए थे।सदानन्द ने फर्श पर ही बिस्तर लगाया हुआ था और सामान के नाम पर एकरेडियो और एक चौकी रखी हुई थी। सदानन्द ने बताया कि महंगाई इतना बढ गई हैकि अब दोनो वक्त खाना खाना बन्द कर दिया है। वे कहते है कि पिछली बार घरगया था तो सत्तू लाया था और शाम के समय उसी से काम चला लेते है। सदानन्दयाद करते है नौ साल पहले का समय जब वो दिल्ली में आये थे। उस समय वोजितने रूपये में काम चला लेते थे उसके दुगुने में भी अब काम नही चल रहाहै। वे कहते है कि दूध और जूस का तो स्बाद भी भूल चुका हूं। कई दिन सेसुकूनभरी नींद को तरसती आंखे उनकी कहानी बयां कर देती है। दो अविवाहितबहनें शादी की उम्र पार कर चुकी है। घरवालें सारी जमा पूंजी उन पर खर्चकर चुके है। घर से जब भी फोन आता है तो केवल एक ही बात होती है नौकरी।केवल आईएएस ही क्यों? इस सवाल के जवाब में वे थोड़ा गंभीर हो जाते है।बताते है कि पिछले छ: प्रसासों में हर बार साक्षात्कार तक पहुंचा हूंलेकिन हर बार अंतिम सूची में जगह नही बना पाया। हर बार प्रारंभिक परीक्षामें चयन होने के बाद दोस्त कहते है कि इस बार निश्चित ही चयन हो जाएगालेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। रूंधे गले के साथ कहते है कि इस बारअंतिम प्रयास है और समझ में नही आ रहा है कि क्या होगा। वे कहते है किमाताजी को आईएएस का मतलब नही पता है, वह कहती है कि बेटा बड़ा बाबू नहीबन पा रहे हो तो छोटा बाबू क्यों नही बन जाते। दो बार रेलवे में और एकबार बैंक में चयन हो चुका है लेकिन सिविल सेवा के मोह के कारण नही गए।उम्र इतनी हो चुकी है कि अब किसी नौकरी के योग्य नही है। अगर इस बार चयननही हुआ तो क्या करेंगे। सदानन्द एक फीकी हंसी के साथ कहते है कि ऐसा हुआतो यमराज और छोटा राजन में से ही एक को चुनना होगा। माता-पिता के सपने औरकुंआरी बहनों के बारे में सोचता हूं तो कलेजा कांपने लगता है और कदमलड़खड़ा जाते है। अब खाली हाथ घर भी नही जा सकते है।आईएएस बनने के बाद क्या रिश्वत लेंगे? सवाल के जवाब में उनकी मुठ्ठीयांभिंच जाती है और चेहरे पर एक आक्रोश झलकनें लगता है। वे कहते है किरिश्वत क्यों नही लूंगा। जब ये समाज मेरी बहन की शादी के लिए रिश्वत लेताहै और मुझसे विश्वविद्यालय में नोकरी की एवज में रिश्वत मांगी जाती है तोमै रिश्वत क्यों नहीं लूं। पिछलें छ: प्रयासों में मैने धौलपुर हाउस मेंईमानदारी की बात करने वाले खूब देखे है। ईमानदारी और सादगी की बातें केवलकिताबों में ही अच्छी लगती है। अगर आपके पास पैसा हो तो सिद्धान्त अपनेआपबन जाते है।कमरें में रखे कैनवास और रंगों की इशारा करते हुए मैने पूछा कि पेटिंगमें रूची थी तो उस क्षेत्र में क्यों नही गए। यह सुनकर सदानन्द के चेहरेपर खुशी की लहर दौड़ जाती है और फिर वे यादों के भंवर में डूब जाते है।वे कहते है कि जिंदगी थ्री इडियटस फिल्म जितनी आसान नही होती है। कितनीरूची थी पेटिंग में और कितने ही चित्र बनाये थे लेकिन सब अरमान धरे रहगए। पिताजी ने कहा कि ये चित्रकारी खाली बैठे अमीर आदमियों का चोंचला है,किसी सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करों।सदानन्द तो एक बानगी भर है, न जाने कितने सदानन्द मुनिरका, कटवारिया सरायऔर मुखर्जी नगर की गलियों में अपने सपनें खोज रहे है। महज पांच सौ सीटोंके लिए लगभग तीन लाख छात्र इस रण में उतरते है। किसी शायर की कही येपंक्तियां इस समर के लिए कितनी उपयुक्त बैठती है “एक आग का दरिया है, बसडूब के जाना है।“

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