लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट और बाबरी का भूत
अरविन्द कुमार सेन
आखिर 17 साल के इंतजार के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। इस मसले पर आखिरी समय तक राजनीति होती रही। पहली बात तो रिपोर्ट आने में इतना समय लगा कि वह उद्देश्य ही पूरा नही हो पाया जिसके लिए आयोग गठित हुआ था। दरअसल इस दौरान अधिकांश आरोपी इस रिपोर्ट के दायरे से बाहर हो गए। एक समय ऐसा भी आया जब इस घटना के जिम्मेदार लोग ही देश के कर्त्ता धर्त्ता बन बैठै। यह रिपोर्ट अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है क्योंकि राजनीतिक परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी है। इस बीच बाबरी विध्वंस के जिम्मेदार लोग सत्ता की मलाई भी खा चुके है। न्याय में देरी एक तरह से न्याय का अपमान ही है।
इस रिपोर्ट में नया कुछ भी नही है। देश की जनता को तब भी पता था कि इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार है। यह आयोग आग लगने के बाद कुआं खोदने की हमारी पुरानी आदत का ही एक प्रमाण है। रिपोर्ट में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम आने पर भाजपा भड़क गई । उनका कहना है कि वाजपेयी की बाबरी विध्वंस में कोई भूमिका नही थी इस कारण वाजपेयी का नाम नही आना चाहियें। क्या भाजपा को वाजपेयी का वह बयान याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि मै नेता बाद में हूं , पहले एक स्वयंसेवक हूं। क्या भाजपा को अटलजी का बाबरी विध्वंस के एक दिन पहले पत्रकारों को दिया वह बयान याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि मुझे नही पता कल क्या होने वाला है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना के कारसेवक अयोध्या जरूर जायेंगे। वाजपेयी जिस पार्टी के लगभग 25 साल सर्वोच्च नेता रहे उन्हें पार्टी की सामूहिक जिम्मेदारी से मुक्त करने का सवाल ही नही उठता है। क्या जब लालकृष्ण आडवाणी राम नाम का पाखंड करने देश में निकले थे तो क्या वाजपेयी को नही पता था। दरअसल भाजपा वाजपेयी को धर्मनिरपेक्ष चेहरे के रूप में इस्तेमाल करती रही है और इस कारण रिपोर्ट में वाजपेयी का नाम आने पर उसे कोफ्त हो रही है।
रिपोर्ट को इतना अधिक समय लगा उसके पीछे कई कारण है। न्यायमूर्ति लिब्रहान ऐसे माहौल में काम कर रहे था जिसमें कुछ लोगों ने इस विचार को स्थापित कर चुके थे कि छह दिसंबर को जो कुछ हुआ वह सही था। लिब्रहान महोदय वर्षो के अथक परिश्रम के बाद किस प्रकार परत दर परत उस कड़वी सचाई पर से पर्दा उठाया है इसका हम अनुमान लगा सकते है। अनुमान करे उन क्षणों का जब घाघ नौकरशाह और सच को झूठ बनाने में माहिर राजनीतिज्ञ आयोग के सामने पेश हुए होंगे। इतने वर्षो में हमने अनेक बार उस काले अध्याय से बचने की कोशिश की पर न्यायमूर्ति लिब्रहान ने आखिर सच से हमारा सामना करवा ही दिया।
लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट का भी वही हश्र होगा जो इससे पहले के गठित किए गए विभिन्न आयोगों की रिपोर्टो का हुआ है। कुछ लोगो का मानना है कि यह रिपोर्ट समाजवादी पार्टी और भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगी। यह सही है कि इस रिपोर्ट को सीढी बनाकर भाजपा और सपा अपने पुराने एजेंडे पर लौट सकते है लेकिन इसका बड़ा फायदा इन पार्टियों को नही होने वाला है। आज मतदाता का मूड बदल चुका है और वह ‘या आली और जय श्रीराम’ के भावनात्मक ज्वार में बहकर वोट डालने वाला नही है।
कांग्रेस ने इस रिपोर्ट का तात्कालिक फायदा जरूर उठा लिया है। सरकार महंगाई, गन्ना किसानों की समस्या, सरकारी कंपनियों में विनिवेश का मसला, नक्सली समस्या, मधु कौड़ा मामला आदि पर चौतरफा घिरी हुई थी लेकिन रिपोर्ट आने के बाद सारे मुद्दे हाशिए पर चले गए है। रिपोर्ट चाहे जहां से लीक हुई हो लेकिन कांग्रेस ने इसका फायदा जरूर उठा लिया है। फिलहाल सभी पार्टियां लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट का राजनीतिक फायदा उठाने की रणनीति बनाने में मशगूल है। बाबरी का भूत फिर से जिंदा हो गया है लेकिन इस बार स्थितियां बदली हुई है।
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
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