अब कीचड़ में खेलता कोई बच्चा नजर नही आता है
अरविन्द कुमार सेन
मुझे अक्सर यह सोचकर हैरत होती है कि आधुनिक समय में शिक्षक की अवधारणा किस कदर बदल गई है। मुझे याद है कि हमारे शिक्षक पढाए जाने वाले विषयों को हमारे लिए दिलचस्प बनाने की कोशिश करते थे। तब बच्चों को किताबी कीड़ा बनाने की कोशिश नहीं होती थी, बल्कि उन्हें यह बताया जाता था कि वास्तव इन विषयों का अध्ययन क्यों करना चाहिए। यही से मै अपनी मूल बात पर आता हूं। आज विषयों के बारे में पढना बेहद उबाऊ बना दिया गया है। इस देश में शिक्षा प्रणाली का ढांचा तो मैकाले का बनाया हुआ है जो केवल सिस्टम चलाने के लिए बाबू तैयार करता है लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि पहले छात्रों पर इतना दबाव नही था। जब से भूमण्डलीकरण की आंधी बहनी शुरू हुई है, शिक्षा तंत्र तहस नहस हो गया है। आज सारा जोर नंबरों पर रहता है,विद्यार्धियों के बौद्धिक विकास पर कोई ध्यान नही दिया जाता है। तथाकथित प्रतिष्ठत स्कूलों में वातानुकूलित बसें और छात्रावास तो है लेकिन उनके पास खेल के मैदान नहीं है। अभिभावकों और स्कूल प्रशासन का दबाव बच्चों की बालसुलभ कोमलता को खत्म कर उन्हें समय से पहले ही समझदार बना रहा है। बड़ा अफसोस होता है कभी कभार क्योंकि अब मुझे कीचड़ में खेलता कोई बच्चा नजर नहीं आता है।
वैसे मुझे सबसे ज्यादा शिकायत नीति-निर्माताओं से है। जिस देश की शिक्षा का पाठ्यक्रम सरकार बदलने के साथ ही भगवाकरण और तुष्टीकरण के नाम पर बदल दिया जाता है वो कैसे विद्यार्थी तैयार करता है इसका अंदाज लगाया जा सकता है। ये बढते तनाव का ही नतीजा है कि जो बच्चें सही से पेन पकड़ना नही जानते है वो रिवॉल्वर से अपने साथियों की हत्या कर रहें है। इससे बड़ी विडंहना क्या होगी कि इस शिक्षा प्रणाली में केवल पास होने वाले छात्र ही सफल माना जाता है। एक छात्र जो संगीत या किसी दूसरी विद्या में पारंगत है लेकिन अपने संस्थान की परीक्षा में फेल हो गया है उसे यह सिस्टम अस्वीकार कर देता है। यह सिस्टम आपको मानवीय संवेदनाओं से रहित डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की गारंटी लेता है लेकिन एक अच्छा इंसान बनाने की कोई गारंटी नहीं हो सकता है।
केवल ग्रेडिंग प्रणाली जैसे फौरी उपायों से स्थिती में ज्यादा सुधार नही होने वाला है। समय की मांग को देखते हुए पूरी शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव करने की आवश्यकता है। साथ ही हमें भूमंडलीकण की आंधी से भी अपने नौनिहालों को बचाना होगा। दुनियाभर के शिक्षाविद इस बात पर एकमत है कि बच्चों कि प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृक्षभाषा में होनी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बच्चों की सृजनात्मक क्षमता सुरक्षित रहें।हमें अपने बच्चों को किताबी कीड़ा बनने से बचाने की जरूरत है। आखिर कोई भी विषय सिर्फ अंक हासिल करने के लिए नही पढाया जाता है। हर विषय हमारे जीवन से कहीं न कहीं जुड़ा है। इस जुड़ाव के बारे में बच्चों को समझाना होगा।
गुरुवार, 21 जनवरी 2010
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